इतिहास गवाह है कि चंबल के बीहड़ों ने अपने घने कांटेदार बबूल के साए के नीचे ही सैकड़ों डाकूओं को पनाह दी है।
बीहड़ों की घाटी से जब मान सिंह राठौर, तहसीलदार सिंह (मानसिंह और तहसीलदार पिता-पुत्र थे ), डाकू रूपा, लाखन सिंह, गब्बर सिंह, लोकमान दीक्षित उर्फ लुक्का पंडित, माधो सिंह (माधव), फिरंगी सिंह, देवीलाल, छक्की मिर्धा, रमकल्ला और स्योसिंह (शिव सिंह) जैसे खूंखार बागी डकैतों का नाम निकलता था तो पूरा देश कांप उठता था।
साठ के दशक के अन्तिम वर्षो का खूंखार समय था वो जब डाकू फिरंगी सिंह, देवीलाल, छक्की मिर्धा स्यो सिंह और रमकल्ला जैसे खूंखार बागी डकैत मारे जा चुके थे ठीक उसी वक्त उस जमाने के सबसे ज्यादा खतरनाक और हर वक्त खून-खराबे पर उतारू बागी मोहर सिंह चंबल के बीहड़ में बंदूक लेकर कूदा था।
पुराने खतरनाक बागियों और उनके गैंगों की चिंता किए बिना मोहर सिंह ने 150 से ज्यादा खूंखार डाकूओं का अपना गिरोह चंबल घाटी में उतार दिया था।
कभी गांव के अखाड़े की भुरभुरी लाल मिट्टी में ‘जोर’ करने वाला गबरू जवान मोहर सिंह गुज्जर को पुश्तैनी जमीन के विवाद में कुछ लोगों ने पीट दिया, बदले में मोहर सिंह ने दुश्मन को गोलियों से भून डाला।
इसके बाद बंदूक उठाई और बागी होकर चंबल के जंगल में कूद गया और फिर भिंड जिले के छोटे से ग्राम महगांव के अखाड़े का पहलवान मोहर सिंह गुज्जर चंबल घाटी के उस वक्त के सबसे खूंखार डाकू मानसिंह राठौर के बाद दूसरे नंबर की क्रूर बागी की कुर्सी पर काबिज हो गया।
कैसा था मोहर सिंह का दबदबा, जेल में दूसरे कैदी ही नहीं जेलर भी क्यों कांपते थे जिसके नाम पर पढियेगा अगली स्टोरी में।